महालक्ष्मी पूजन विधि



दीपावली के दिन कैसे करें महालक्ष्मी का पूजन 


दीवाली के दिन की विशेषता लक्ष्मी जी के पूजन से संबन्धित है | इस दिन हर घर, परिवार, कार्यालय में लक्ष्मी जी के पूजन के रुप में उनका स्वागत किया जाता है| दीपावली के दिन व्यापारी वर्ग अपनी दुकान या प्रतिष्ठान पर दिन के समय लक्ष्मी का पूजन करता है वहां गृहस्थ लोग सांय प्रदोष काल में महालक्ष्मी का आवाहन करते हैं। 

गोधूलि लग्न में पूजा आरंभ करके महानिशीथ काल तक अपने अपने अस्तीत्व के अनुसार महालक्ष्मी के पूजन को जारी रखा जाता है। इसका अभिप्राय यह है कि जहां गृहस्थ और वाणिज्य वर्ग के लोग धन की देवी लक्ष्मी से समृद्धि और वित्त कोष की कामना करते हैं, वहां साधु-सन्त और तांत्रिक लोग कुछ विशेष सिद्धियां अर्जित करने के लिए रात्रिकाल में अपने तांत्रिक षट कर्म करते हैं।

लक्ष्मी पूजनकर्ता दीपावली के दिन जिन पण्डितजी से लक्ष्मी का पूजन करायें, हो सके तो उन्हें सारी रात अपने यहां रखें और उनसे श्री सूक्त, लक्ष्मी सहस्रनाम आदि का पाठ और हवन करावें। पश्चात् पण्डित जी को श्रद्धा-भक्ति पूर्वक दक्षिणा दें।


पूजन की सामग्री  

महालक्ष्मी पूजन में लक्ष्मी व श्री गणेश की मूर्तियां या चित्र  (बैठी हुई मुद्रा में),केशर, रोली, चावल, पान का पत्ता, सुपारी, फल, फूल, दूध, खील, बतासे, सिन्दूर,शहद, सिक्के, लौंग, सूखे मेवे, मिठाई, दही गंगाजल धूप अगरबत्ती दीपक रूई तथा कलावा, नारियल और कलश के लिये एक ताम्बे का पात्र चाहिये।



कैसे करें तैयारी

एक थाल में या भूमि को शुद्ध करके नवग्रह बनायें अथवा नवग्रह का यंत्र स्थापित करें। इसके साथ ही एक ताम्बे का कलश बनायें, जिसमें गंगा जल, दूध, दही, शहद, सुपारी, सिक्के और लौंग आदि डालकर उसे लाल कपड़े से ढक कर एक कच्चा नारियल कलावे से बांध कर रख दें। जहां पर नवग्रह यंत्र बनाया है, वहां पर रुपया सोना या चांदी का सिक्का लक्ष्मी जी की मूर्ति अथवा मिट्टी के बने हुए लक्ष्मी गणेश सरस्वती जी अथवा ब्रहमा विष्णु महेश आदि देवी देवताओं की मूर्तियां अथवा चित्र सजायें। कोई धातु की मूर्ति हो तो उसे साक्षात रूप मानकर दूध, दही और गंगा जल से स्नान कराकर अक्षत चंदन का श्रृंगार करके फल-फूल आदि से सज्जित करें। इसके ही दाहिने ओर एक पंचमुखी दीपक अवश्य जलायें, जिसमें घी या तिल का तेल प्रयोग किया जाता है।

लक्ष्मी पूजन की विधि 

घर के वरिष्ठ सदस्य या जो नित्य ही पूजा पाठ करते हैं, उन्हें महालक्ष्मी पूजन के समय तक व्रत रखना चाहिए। घर के सभी सदस्यों को महालक्ष्मी पूजन के समय घर से बाहर नहीं जाना चाहिए। सभी सदस्य प्रसन्न मुद्रा में घर में सजावट और आतिशबाजी का आयोजन करें। आज के व्यापारिक युग में आतिश बाजी और बम और पटाखे खतरे से खाली नहीं हैं। अतः छोटे बच्चों के साथ इनका प्रयोग करते वक्त सावधानी बरतें। ऐसे मौके पर कभी कभी दुर्घटना और गमगीन वातावरण होने का डर रहता है। 
                       
लक्ष्मी पूजनकर्ता स्नान आदि नित्यकर्म से निवृत होकर पवित्र आसन पर बैठकर आचमन, प्राणायाम करके स्वस्ति वाचन करें। अनन्तर गणेशजी का स्मरण कर अपने दाहिने हाथ में गन्ध, अक्षत, पुष्प, दूर्वा, द्रव्य और जल आदि लेकर दीपावली महोत्सव के निमित्त गणेश, अम्बिका, महालक्ष्मी, महासरस्वती, महाकाली, कुबेर आदि देवी-देवताओं के पूजनार्थ संकल्प करें । पश्चात सर्वप्रथम गणेश और अम्बिका का पूजन करें। अनन्तर कलश स्थापन, षोडशमातृका पूजन और नवग्रह पूजन करके महालक्ष्मी आदि देवी-देवताओं का पूजन करें।


लक्ष्मी पूजा की विधि और पाठ मंत्र    

गणेश पूजन, दीप पूजन और गौ द्रव्य पूजन इस पर्व की विशेषताएं हैं। इनसे तात्पर्य यह है कि धन की अधिष्ठात्री देवी लक्ष्मी, अर्थात अर्थ की सदबुद्धि, ज्ञान प्रकाश और परमार्थिक कार्यों से विरोध नहीं होना चाहिए, वरन अर्थ का उपयोग इनके लिए हो और अर्थोपार्जन भी इन्हीं से प्रेरित हो।

लक्ष्मी पूजन प्रारंभ करने से पूर्व पूजा वेदी पर लक्ष्मी-गणेश के चित्र, या मूर्ति, वही-खाते, कलम दवात आदि भली प्रकार सजा कर रख देने चाहिएं तथा आवश्यक पूजा की सामग्री तैयार कर लेनी चाहिए।

लक्ष्मी पूजन प्रारंभ

ऊँ श्री गणेशाय नम:

तीर्थों का आवाहन
पुष्कराद्यानि तीर्थानि गंगाद्याः सरितस्तथा। आगच्छन्तु पवित्राणि पूजा काले सदा मम।। 
गंगे च यमुने चैव गोदावरि सरस्वति। नर्मदे सिन्धु कावेरि जलेऽस्मिन् संनिधिं कुरू।।
कुरूक्षेत्र-गया-गंगा-प्रभास-पुष्कराणि च। एतानि पुण्यतीर्थानि पूजा काले भवन्त्विह।।
त्वं राजा सर्वतीर्थानां त्वमेव जगतः पिता। याचितं देहि में तीर्थ तीर्थराज। नमोऽस्तु ते।।

पवित्रीकरण
बायें हाथ में जल ले कर उसे दाहिने हाथ से ढक लें। मंत्रोच्चारण के साथ जल को सिर तथा शरीर पर छिड़क लें। पवित्रता की भावना रखें।
ओम् अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपि वा।
यः स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाहयाभ्यन्तरः शुचिः।।

आचमन
तीन बार वाणी, मन और अंतःकरण की शुद्धि के लिए चम्मच से जल का आचमन करें। हर मंत्र के साथ एक आचमन किया जाएं।
ओम् केशवाय नमः।।1।। 
ओम् नारायणाय नमः।।2।।
ओम् माधवाय नमः।।3।। 
ओम् गोविंदाय नमः।।4।।
(यह कहकर हाथ धोये)

प्राणायाम
श्वास को धीमी गति से भीतर गहरा खंच कर थोड़ा रोकना और धीरे-धीरे बाहर निकालना प्राणायाम कृत्य में आता है। श्वास खींचने के साथ भावना करें कि प्राण शक्ति और रेष्ठता सांस के द्वारा अंदर खींची जा रही है। छोड़ते समय यह भावना करें कि हमारे दुर्गुण-दुष्पृत्तियां बुरे विचार प्रश्वास के साथ ही बाहर निकल रहे हैं। प्राणायाम निम्न मंत्र के उच्चारण के साथ किया जाए।

ओम् भूः ओम् भुवः ओम् स्वः ओम् महः ओम् जनः ओम् तपः ओम् सत्यम्
ओम् तःत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि। धियो यो नः प्रचोदयात्।
ओम् आपो ज्योति रसोऽमृतं ब्रहम भूर्भवः स्वरोम्।

न्यास 
इसका प्रयोजन शरीर के सभी महत्वपूर्ण अंगों में पवित्रता का समावेश करने तथा अंतः की चेतना को जगाने के लिए है, ताकि देव पूजन जेसा श्रेष्ठ कृत्य किया जा सके। बायें हाथ की हथेली में जल ले कर दाहिने हाथ की पांचों उंगलियों को उनमें भिगो कर बताये गये स्थान को मंत्रोच्चार के साथ स्पर्श करें।



ओम् वाङ्मेऽआस्येऽस्तु ।                                                    (मुख को)
ओम् नासोर्मेप्राणोऽस्तु ।                                           (नासिका के दोनों छिद्रो को)
ओम् अक्ष्णोर्मेचक्षुरस्तु  ।                                                 (दोनों नेत्रों को)
ओम् कर्णयोर्मे श्रोत्रमस्तु ।                                               (दोनों कानों को)
ओम् बाह्वोर्मे बलमस्तु ।                                                  (दोनों बाहों को)
ओम् ऊर्वोर्मेओजोऽस्तु ।                                                  (दोनों जंघाओं को)
ओम् अरिष्टानिमेऽङगानि तनुस्तन्वा में सह सन्तु ।        (समस्त शरीर को)




आसन शुद्धि
आसन शुद्धि की भावना के साथ धरती माता का स्पर्श करें।

ओम् पृथ्वि त्वया धृता लोका देवि त्वं विष्णुना धृता।
त्वं च धारय मां देवि पवित्रं कुरू चासनम्।।

चंदन धारण 
मस्तिष्क के विचारों को शांत, शीतल एवं सुगंधित, पवित्र और निष्पाप बनाने के लिए चंदन मस्तिष्क पर लगाएं।

चन्दनस्य महत्पुण्यं पवित्रं पाप नाशनम्।
आपदां हरते नित्यं लक्ष्मीस्तिष्ठति सर्वदा।।

रक्षा सूत्रम्
अपने उत्तरदायित्वों को पूरा करने के पुण्य कार्य के लिए व्रतशीलता धारण करूंगा, यह भाव रखें। पुरूषों तथा अविवाहित लड़कियों के दाहिने हाथ में और महिलाओं के बायें हाथ में कलावा बांधा जाता है। 

ओम् व्रतेन दीक्षामाप्नोति दीक्षयाऽऽप्नोवि दक्षिणाम्। दक्षिणा श्रद्धामाप्नोति श्रद्धया सत्यमाप्यते।।
                             (ब्राहमण को कलावा बांधें)
येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबलः। तेन त्वामनुबध्नामि रक्षे मा चल मा चल।।
                                  (ब्राहमण से कलावा बंधवाएं)

तिलक
ओम् स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवाः स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः।
स्वस्ति नस्ताक्ष्र्यो अरिष्टनेमिः स्वस्ति नो बध्स्थतिर्दधातु।।

रक्षा विधान
यज्ञादि शुभ कार्यो में आसुरी शक्तियां विघ्न उत्पन्न करती हैं। इनसे रक्षा के लिए रक्षा विधान प्रयोग किया जाता है। सभी लोग भावना करें कि दसों दिशाओं में भगवान की शक्तियां इस शुभ आयोजन और इसमें सम्मिलित लोगों का संरक्षण करेंगी।

बायें हाथ पर पीली सरसों अथवा अक्षत रखें और दायें हाथ से ढक लें और दायें घुटने पर रखें। निम्न मंत्र बोलें -

ओम् अपसर्पनतु ते भूता ये भूता भूतले स्थिताः। ये भूता विघ्नकर्तारस्ते नश्य शिवाज्ञया।।
अपक्रामन्तु भूतानि पिशाचाः सर्वतोदिशम्। सर्वेषामविरोधेन पूजा कर्मसमारभे।।
दशों दिशाओं में मंत्रोच्चार के साथ उसे फेंके।

संकल्प
उसके बाद जल-अक्षत लेकर पूजन का संकल्प करें- संकल्प मंत्र को बोलते हुए संकल्प कीजिए कि विक्रम संवत के कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि को मैं अमुक व्यक्ति अमुक स्थान व समय पर सपरिवार लोक कल्याण, आत्म कल्याण, उज्जवल भविष्य तथा कामना पूर्ती, दीर्घायु एवं आरोग्य जीवन पुत्र-पौत्र, धन-धन्य आदि समृद्धि के लिए महालक्ष्मी को प्रसन्न करने हेतु लक्ष्मी पूजन का संकल्प लेता हूँ जिससे मुझे शास्त्रोक्त फल प्राप्त हो।



ओम् विष्णुर्विष्णुर्विष्णुः श्रीमद्भगवतों महापुरूषस्य विष्णोराज्ञया प्रवर्तमानस्य
         ब्रहमणोऽहि द्वितीयपरार्धे श्री श्वेतवाराहकल्पे
   वैवस्वतमन्वन्तरे भूर्लोके, दक्षिणायने मासानां मासोत्तमेमासे
     कार्तिक मासे कृष्ण पक्षे अमावस्यां तिथौ भृगुवासरे
  ------गोत्रोत्पन्नः-------नामाः अहं सपरिवारस्य
  लोककल्याणाय आत्मकल्याणाय, भविष्योज्जवलकामनापूर्तये
        श्रुति-स्मृति-पुराणोक्तफल प्राप्तयर्थ
    दीर्घायुआरोग्य-पुत्र-पोैत्र-धन-धान्यादिसमृद्ध्यर्थे
      श्रीमहालक्ष्मीदेव्याः प्रसन्नार्थ लक्ष्मीपूजनंकरिष्ये ।



ऐसा  मन्त्र पढ़कर  संकल्प का जल छोड़ दें। 

मूर्ति प्राण प्रतिष्ठा
पूजन से पूर्व नई प्रतिमा की निम्न रीति से प्राण-प्रतिष्ठा करें | बाएं हाथ में चावल लेकर निम्नलिखित मंत्रों को पढ़ते हुए दाहिने हाथ से उन चावलों को प्रतिमा पर छोड़ते जाएं-

ऊँ मनो जूतिर्जुषतामाज्यस्य बृहस्पतिर्यज्ञमिमं तनोत्वरिष्टं यज्ञ समिमं दधातु। 
विश्वे देवास इह मादयन्तामोम्प्रतिष्ठ।।
ऊँ अस्यै प्राणा: प्रतिष्ठन्तु अस्यै प्राणा: क्षरन्तु च।
अस्यै देवत्वमर्चायै मामहेति च कश्चन।।

गणेश जी का आवाहन
ओम् गणानां त्वा गणपति ग्वं हवामहे प्रियाणां त्वा प्रियपति ग्वं हवामहे निधीनां त्वा निधिपति ग्वं हवामहे वसो मम। आहमजानि गर्भधमात्वमजासि गर्भधम्।।
हे हरेम्ब! त्वमेहयेम्बिका त्रयम्बकात्मज सिद्धिबुद्धिपते त्रयलक्ष लाभ्प्रभो पितः।। नागास्य नागरहारत्वं, गणराज चतुर्भुज। षितैः स्वायुधैर्दन्त पाशांकुशपरश्वधैः आवाहयामि पूजार्थ रक्षार्थ 
व ममक्रतोः। इहागत्य गृहागत्य गृहाणत्वं पूजां यागंच च रक्षमे।।
ओम् अनौप्सितार्थसिद्धयार्थ पूजितो यः सुरासुरैः। सर्वविघ्नहरस्तस्मै गणाधिपतये नमः।।
ओम् री गणेशाय नमः ध्यायामि आवाहयामि, स्थापयामि। गंधाक्षतं पत्रपुष्पाणि समर्पयामि।।



देहलीविनायक पूज
न 


दीपावली पर देवी महालक्ष्मी तथा भगवान श्रीगणेश के साथ ही देहलीविनायक (श्रीगणेश) की पूजा करने का विधान भी है। इसकी विधि  है- दुकान ये ऑफिस में दीवारों पर ऊँ श्रीगणेशाय नम:, स्वस्तिक चिह्न, शुभ-लाभ आदि मांगलिक एवं कल्याणकार शब्द सिन्दूर से लिखे जाते हैं। इन्हीं शब्दों पर 
ऊँ देहलीविनायकाय नम: 
इस नाममंत्र द्वारा गंध-पुष्पादि से पूजन करें।

कलश पूजन 
शांति शीतलता श्रद्धा का मंगलमय प्रतीक यह कलश सभी देवताओं के निवास के लिए सबसे उपयुक्त उपकरण है। स्थापित देव कलश में समस्त देवताओं का आहवान किया जाता है। भावना करें कि जिन देवताओं को आहवान किया जा रहौ वे इस कलश में आ कर निवास करेंगे। मंत्रोच्चार के साथ कलश में अक्षत-पुष्प डालें।

ओम् कलशस्य मुखे विष्णुःकण्ठे रूद्रः समाश्रितः। 
मूले त्वस्य स्थितों ब्रहमा मध्ये मातृगणाः स्मृताः।।

कुक्षौ तु सागराः सर्वे सप्तद्वीपा वसुन्धरा। 
ऋग्वेदोऽथ यजुर्वेद सामवेदो हय्थर्वणः।।

अंगैश्च सहिताः सर्वे कलशात समाश्रिताः। 
अत्र गायत्री सावित्री शान्तिः पुष्टिकरी तथा।।

     प्रार्थना 
देवदानवसंवादे मथ्यमाने महोदधौ। 
उत्पन्नोऽसि तदा कुम्भ विधृतो विष्णुना स्वयम्।।

त्वत्तोये सर्वतीर्थानि देवाः सर्वे त्वयि स्थिताः। 
त्वयि तिष्ठनित भूतानि त्वयि प्राणाः प्रतिष्ठिताः।।

शिवः स्वयं त्वमेवासि विष्णुस्त्वं च प्रजापतिः। 
आदित्या सववो रूदा्र विश्वेदेवाः सपैतृकाः।।

त्वयि तिष्ठनित सर्वेऽपि यतः कामफलप्रदाः। 
त्वत्प्रसादादिम यज्ञं कर्तुमीहे जलोद्भव।।

सांनिध्यं कुरू में देव प्रसन्नो भव सर्वदा। 
ओम् भूर्भुवः स्वः कलशस्थ देवताभ्यो नमः।।

गंधं, अक्षतं, पत्रं, पुष्पं समर्पयामि।

दीपमालिका (दीपक) पूजन 
दीपक ज्ञान के प्रकाश का प्रतीक है। हृदय में भरे हुए अज्ञान और संसार में फेले हुए अंधकार का शमन करने वाला दीपक देवताओं की ज्योतिर्मय शक्ति का प्रतिनिधि है। इसे भगवान का तेजस्वी रूप मान कर पूजा जाना चाहिए। भावना करें कि सबके अंतःकरण में सद्ज्ञान का प्रकाश उत्पन्न हो रहा है। बीच में एक बड़ा घृत दीपक और उसके चारों ओर ग्यारह, इक्कीस, अथवा इससे भी अधिक दीपक, को प्रज्वलित कर महालक्ष्मी के समीप रखकर उस दीपज्योति का ऊँ दीपावल्यै नम: इस नाममंत्र से गंधादि उपचारों द्वारा पूजन कर अपनी पारिवारिक परंपरा के अनुसार तिल के तेल से प्रज्वलित करके एक परात में रख कर आगे लिखे मंत्र से ध्यान करें। 

ध्यान 

त्वं ज्योतिस्त्वं रविश्चनद्रो विद्युदग्निश्च तारका:।
सर्वेषां ज्योतिषां ज्योतिर्दीपावल्यै नमो नम:।।

भो दीप ब्रहमरूपस्त्वं अन्धकारविनाशक। 
इमां मया कृतां पूजां गृहणन्तेजः प्रवर्धय।।
गंध, अक्षत, पत्र और पुष्प चढ़ाने के पश्चात हाथ जोडकर निम्न प्रार्थना करें।

प्रार्थना 
शुभं करोतु कल्याणमारोग्यं सुख सम्पदाम्। मम बुद्धि प्रकाशं च दीपज्योतिर्नमोऽस्तुते।।
शुभं भवतु कल्याणमारोग्यं पुष्टिवर्धनम्। आत्मतत्वप्रबोधायदीपज्योतिर्नमोऽस्तुते।।


दीपमालिकाओं का पूजन कर संतरा, ईख, धान इत्यादि पदार्थ चढ़ाएं। धान का लावा(खील) गणेश, महालक्ष्मी तथा अन्य सभी देवी-देवताओं को भी अर्पित करें। अंत में अन्य सभी दीपकों को भी जला लें।

षोडशमातृका पूजन 
ओम् गौरी पंच  शचीमेधा सावित्री विजया जया। देवसेना स्वधा स्वाहा मातरो लोक मातरः।।
धृतिः पुष्टिस्तथा तुष्टिरात्मनः कुलदेवताः। गणेशेनाधिका ह्येता वृद्धौ पूज्याश्च षोडश।।
        ओम् भूर्भुवः स्वः षोडश मातृकाभ्यो नमः इहागच्छत इह तिष्ठत।
                 (ओम् गौर्यादिषेडशमातृकाभ्यो नमः)

प्रार्थना  
ओम जयन्ती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी। 
दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तु ते।।

माता गौरी का आवाहन
र्वमंगलमांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके। शरण्ये त्रयम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तु ते।।
ओम् श्रीगौर्यै नमः आवाहयामि, स्थापयामि। गंधाक्षत पत्रपुष्पाणि समर्पयामि।।

श्री महालक्ष्मी पूजन के मंत्र
अब  पूर्व स्थापित मूर्तिमयी श्री लक्ष्मी जी के पास किसी थाली अथवा कटोरे में केशरयुक्त चंदन से अष्ट दल कमल बना कर उव पर द्रव्य लक्ष्मी (सोना अथवा चांदी के सिक्के, विविध सिक्के, लेकिन जिन सिक्कों पर मनुष्यों के चित्र अंकित हों उन्हें देवता समान पूजना निषेध है) स्थापित करके एक साथ ही दोनों की पूजा निम्न लिखित विधान से करें: 

ध्यान 
यासा पùसनस्था विपुलकटितटी पùपत्रायताक्षी गम्भीरावर्तनाभिस्तनभरनमिता शुभ्रवस्त्रोत्तरीया।
या लक्ष्मीर्दिव्यरूपैर्मणिगणखचितैः स्नापिता हेमकुम्भैः सा नित्यं पùहस्ता मम वसतु गृहे सर्वमांगल्ययुक्ता।।
ओम् हिरण्यवर्धा हरिणीं सुवर्णरजतस्रजाम्। चन्द्रां हिरण्यमयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आ वह।।
ओम् महालक्ष्म्यै नमः। ध्यानार्थे पुष्पाणि समर्पयामि।
       (ध्यान कर पुष्प अर्पण करें)

स्नान
ओम् महालक्ष्म्यै नमः। स्नानं समर्पयामि।
           (स्नान के लिए जल चढ़ाएं)

दुग्ध -स्नान
ओम् पयः पृथिव्यां पय ओषधीषु पयो दिव्यन्तरिक्षे पयो धाः।
पयस्वतीः प्रदिशः सन्तु मह्यम्।।
ओम् महालक्ष्म्यै नमः। पयःस्नानं समर्पयामि। पयःस्नानान्ते शुद्धोदकस्नां समर्पयामि।
     (गौ के कच्चे दूध से स्नान कराये, पुनः शुद्ध जल से स्नान करायें।)

पंचामृत स्नान
एकत्र मिश्रित पंचामृत से एकतंत्र से निम्न मंत्र से स्नान करायें।
पयो दधि घृतं चैव मधुशर्करयान्वितम्।
पंचामृतं मयानीतं स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम्।।
ओम् पंच नद्यः सरस्वतीमपि यन्ति सस्रोतसः।
सरस्वती तु पंचधा सो देशेऽीावत् सरित्।।
ओम महालक्ष्म्यै नमः । पंचामृतस्नानं समर्पयामि, पंचामृतस्नानान्ते शुद्धोदकस्नानं समर्पयामि।
       (पंचामृत स्नान के अनन्तर शुद्ध जल से स्नाना करायें।)

अंग पूजा

रोली, कुंकुम मिश्रित अक्षत-पुष्पों से निम्नांकित एक-एक नाम-मंत्र बढ़ते हुए अंग पूजा करें।

ओम् चपलायै नमः, पादौ पूजयामि।
ओम् चंचलायै नमः, जानुनी पूजयामि।
ओम् कमलायै नमः, कटिं पूजयामि।
ओम् कात्यायन्यै नमः, नाभिं पूजयामि।
ओम् जगन्मात्रे नमः, जठरं पूजयामि।
ओम् विश्ववल्लभायै नमः, वक्षःस्ािलं पूजयामि।
ओम् कमलवासिन्यै नमः, हस्तौ पूजयामि।
ओम् पùाननायै नमः, मुखं पूजयामि।
ओम् कमलपत्राक्ष्यै नमः, नेत्रत्रयं पूजयामि।
ओम् श्रियै नमः, शिरः पूजयामि।
ओम् महालक्ष्म्यै नमः, सर्वांग पूजयामि।

कर्पूर आरती 
यः शुचिः प्रयतो भूत्वा जुहुयादाज्यमन्वहम्। सूक्तं पंचदशर्च च श्रीकामः सततं जपेत्।।

प्रदक्षिणा 
यानि कानि च पापानि जन्मान्तरकृतानि च।
तानि सर्वाणि नश्यन्तु प्रदक्षिणा पदे पदे।।
                         (मानसिक परिक्रमा करें)

श्री महाकाली (दवात) पूजन


स्याहीयुक्त दवात को भगवती महालक्ष्मी के सामने फूल तथा चावल के ऊपर रखकर उस पर सिंदूर से स्वस्तिक बना दें तथा मौली लपेट दें।
ऊँ श्रीमहाकाल्यै नम: 
इस नाममंत्र से गंध-पुष्पादि पंचोपचारों से या षोडशोपचारों से दवात तथा भगवती महाकाली का पूजन करें और अंत में इस प्रकार प्रार्थनापूर्वक उन्हें प्रणाम करें-

कालिके! त्वं जगन्मातर्मसिरूपेण वर्तसे।
उत्पन्ना त्वं च लोकानां व्यवहारप्रसिद्धये।

या कालिका रोगहरा सुवन्द्याभक्तै: समस्तैव्र्यवहारदक्षै:।
जनैर्जनानां भयहारिणी च सा लोकमाता मम सौख्यदास्तु।।
               



लेखनी पूजन


लेखनी (कलम) पर मौली बांधकर सामने रख लें और इस नाम मंत्र द्वारा गंध, पुष्प, चावल आदि से पूजन कर-
लेखनी निर्मिता पूर्वं ब्रह्मणा परमेष्ठिना।
लोकानां च हितार्थय तस्मात्तां पूज्याम्यहम्।।

ओम् लेखन्यै नमः। 
ऊँ लेखनीस्थायै देव्यै नम:||

गंधाक्षत पत्रपुष्पाणि समर्पयामि। नमस्करोमि।
   (चंदन पुष्पाक्षत अर्पण कर नमस्कार करें।)

प्रार्थना 
शास्त्राणां व्यवहाराणां विद्यानामाप्युयाद्यात:।
अतस्त्वां पूजयिष्यामि मम हस्ते स्थिरा भव।।


सरस्वती (बही-खाता) पूजन


बही खातों का पूजन करने के लिए पूजा मुहुर्त समय अवधि में नवीन बहियों व खाता पुस्तकों पर केसर युक्त चंदन से अथवा लाल कुमकुम से स्वास्तिक का चिन्ह बनाना चाहिए. इसके बाद इनके ऊपर "श्री गणेशाय नम:" लिखना चाहिए. इसके साथ ही एक नई थैली लेकर उसमें हल्दी की पांच गांठे, कमलगट्ठा, अक्षत, दुर्गा, धनिया व दक्षिणा रखकर, थैली में भी स्वास्तिक का चिन्ह लगाकर सरस्वती मां का स्मरण करना चाहिए.


या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता,
या वीणावरदण्डण्डितकरा या श्वेतपद्मासना।,
या ब्रह्माच्युतशंकरप्रभृतिभि र्देवै: सदा वन्दिता,
सा मां पातु सरस्वती भगवती नि:शेषजाड्यापहा।।


ध्यान
शुक्लां ब्रह्यविचारसारपरमामाद्यां जगद्व्यापिनी वीणापुस्तकधारिणीमभयदां जाड्यान्धकारापहाम्।
हस्ते सुटिकमालिकां विदधतीरं पद्मासने संस्थितं वन्दे तां परमेश्वरीं भगवतीं बुद्धिप्रदां शारदाम्।।
ओम् सरस्वत्यै नमः, सर्वोपचारार्थे गन्धाक्षतपुष्पाणि समर्पयामि, नमस्करोमि।





अर्थात :- जो अपने कर कमलों में घटा, शूल, हल, शंख, मूसल, चक्र, धनुष और बाण धारण करती है, चन्द्र के समान जिनकी मनोहर कांति है. जो शुंभ आदि दैत्यों का नाश करने वाली है. वाणी बीज जिनका स्वरुप है, तथा जो सच्चिदानन्दमय विग्रह से संपन्न हैं, उन भगवती महासरस्वती का मैं ध्यान करता हूं. ध्यान करने के बाद मां सरस्वती का  तथा  ही खातों का गंध, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्ध से पूजन करना चाहीए व इसके साथ ही निम्न मंत्र का 108 बार जाप करना चाहिए

ऊँ वीणापुस्तकधारिण्यै श्रीसरस्वत्यै नम:


अर्थात :- " ऊँ वीणा पुस्तक धारिणी सरस्वती" आपको नमस्कार हैं.


तुला (तराजू) पूजन

 सिंदूर से तराजू पर स्वस्तिक बना लें। मौली लपेटकर तुला देवता का इस प्रकार ध्यान करें-
ध्यान
नमस्ते सर्वदेवानां शक्तित्वे सत्यमाश्रिता।
साक्षीभूता जगद्धात्री निर्मिता विश्वयोनिना।।
मंत्र 
 ऊँ तुलाधिष्ठातृदेवतायै नम:
 इस नाम मंत्र से गंध, चावल आदि उपचारों द्वारा पूजन कर नमस्कार करें

कुबेर पूजन 

कुबेर पूजन करने के लिये प्रदोष काल व निशिथ काल को लिया जा सकता है. ऊपर दिये गये शुभ समय में कुबेर पूजन करना लाभकारी रहेंगा.कुबेर पूजन करने के लिये सबसे पहले तिजोरी अथवा धन रखने के संदुक पर स्वास्तिक का चिन्ह बनायें, और कुबेर का आह्वान करें. आह्वान के लिये निम्न मंत्र बोलें.

आवाहयामि देव त्वामिहायाहि कृपां कुरु।
कोशं वद्र्धय नित्यं त्वं परिरक्ष सुरेश्वर।।

आह्वान करने के बाद ऊँ कुबेराय नम: इस मंत्र को 108 बार बोलते हुए धन संदूक कि गंध, पुष्प आदि से पूजन करना चाहिए. साथ ही निम्न मंत्र बोलते हुए कुबेर देव से प्रार्थना करें.


धनदाय नमस्तुभ्यं निधिपद्माधिपाय च।
भगवान् त्वत्प्रसादेन धनधान्यादिसम्पद:।।

इस प्रकार प्रार्थनाकर पूर्व पूजित हल्दी, धनिया, कमलगट्टा, द्रव्य, दूर्वादि से युक्त थैली तिजोरी मे रखें

नवग्रह पूजा 

हाथ में चावल और फूल लेकर नवग्रह का ध्यान करें और निम्न मन्त्र दोहराएँ :-

ओम् ब्रहमा मुरारिस्त्रिपुरान्तकारी भानुः शशि भूमिसुतो बुधश्च।
गुरूश्च शुक्रः शनिराहुकेतवः सर्वे ग्रहाः शन्तिकरा भवन्तु।।
नवग्रह देवताभ्यो नमः आहवयामी स्थापयामि नमः।

आरती



दीपावली पर देवी महालक्ष्मी, भगवान श्रीगणेश, देहली विनायक, दवात, लेखनी, बही, कुबेर, तुला व दीपमाला पूजन के पश्चात महालक्ष्मी की आरती की जाती है।

आरती के लिए एक थाली में स्वस्तिक आदि मांगलिक चिह्न बनाकर चावल तथा पुष्पों के आसन पर शुद्ध घी का दीपक जलाएं। एक पृथक पात्र में कर्पूर भी प्रज्वलित कर वह पात्र भी थाली में यथास्थान रख लें, आरती- थाल के जल से स्वयं की शुद्धि करें (छिड़क लें)। पुन: आसन पर खड़े होकर अन्य पारिवारिक जनों के साथ घण्टानादपूर्वक निम्न आरती गाते हुए -कर्पूर, या घृत के दीपक से श्री महालक्ष्मी जी मंगल आरती करें
ध्यान
महालक्ष्मी नमस्तुभ्यं, नमस्तुभ्यं सुरेश्र्वरी |
हरिप्रिये नमस्तुभ्यं, नमस्तुभ्यं दयानिधे ॥
आरती
ॐ जय लक्ष्मी माता मैया जय लक्ष्मी माता | 
तुमको निसदिन सेवत, हर विष्णु विधाता ॥
ॐ जय लक्ष्मी माता....
उमा ,रमा,ब्रम्हाणी, तुम जग की माता | 
सूर्य चद्रंमा ध्यावत, नारद ऋषि गाता ॥
.ॐ जय लक्ष्मी माता....
दुर्गारुप निरंजन, सुख संपत्ति दाता | 
जो कोई तुमको ध्याता, ऋद्धि सिद्धी धन पाता ॥
ॐ जय लक्ष्मी माता....
तुम ही पाताल निवासनी, तुम ही शुभदाता | 
कर्मप्रभाव प्रकाशनी, भवनिधि की त्राता ॥
ॐ जय लक्ष्मी माता.... 
जिस घर तुम रहती हो , ताँहि में हैं सद् गुण आता|
सब सभंव हो जाता, मन नहीं घबराता॥
ॐ जय लक्ष्मी माता.... 
तुम बिन यज्ञ ना होता, वस्त्र न कोई पाता |
खान पान का वैभव, सब तुमसे आता ॥
ॐ जय लक्ष्मी माता.... 
शुभ गुण मंदिर सुंदर क्षीरनिधि जाता| 
रत्न चतुर्दश तुम बिन ,कोई नहीं पाता ॥
ॐ जय लक्ष्मी माता....
महालक्ष्मी जी की आरती ,जो कोई नर गाता | 
उँर आंनद समाा,पाप उतर जाता ॥
ॐ जय लक्ष्मी माता....
स्थिर चर जगत बचावै ,कर्म प्रेर ल्याता | 
रामप्रताप मैया जी की शुभ दृष्टि पाता ॥
ॐ जय लक्ष्मी माता.... 
ॐ जय लक्ष्मी माता मैया जय लक्ष्मी माता | 
तुमको निसदिन सेवत, हर विष्णु विधाता ॥
ॐ जय लक्ष्मी माता...


पुष्पांजलि

ओम् या श्रीः स्वयं सुकृतिनां वनेष्वलक्ष्मीः, पापात्मनां कृतधियां हृदययेषु बुद्धिः।।
श्रद्धा सतां कुलजनप्रभवस्य लज्जा, तां त्वां नताः स्मः परिपालय देवि विश्वम्।
ओम् महालक्ष्म्यै नमः, मन्त्रपुष्पान्जलिं समर्पयामि नमः।।

क्षमा प्रार्थना


अंत में क्षमा प्रार्थना कर पूजन को पूर्ण करें | इस प्रार्थना द्वारा अपने अपराधों या पूजन की त्रुटियों के लिए माँ से क्षमा मांग कर इस पूजन को पूर्ण करने की प्रार्थना करें |



ॐ अपराधसहस्त्राणि क्रियन्तेऽहर्निशं मया।

दासोऽयमिति मां मत्वा क्षमस्व परमेश्वरि।।१।।


आवाहनं न जानामि न जानामि विसर्जनम्।
पूजां चैव न जानामि क्षम्यतां परमेश्वरि।।२।।



मन्त्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं सुरेश्वरि।
यत्पूजितं मया देवि परिपूर्णं तदस्तु मे।।।३।।



अपराधशतं कृत्वा जगदम्बेति चोच्चरेत् ।
यां गतिं समवाप्नोति न तां ब्रह्मादयः सुराः ।। ४।।



सापराधोऽस्मि शरणं प्राप्तस्त्वां जगदम्बिके ।
इदानीमनुकम्प्योऽहं यथेच्छसि तथा कुरु ।। ५।।



अज्ञानाद्विस्मृतेर्भ्रोन्त्या यन्न्यूनमधिकं कृतम् ।
तत्सर्वं क्षम्यतां देवि प्रसीद परमेश्वरि ।। ६।।



कामेश्वरि जगन्मातः सच्चिदानन्दविग्रहे ।
गृहाणार्चामिमां प्रीत्या प्रसीद परमेश्वरि ।। ७।।



गुह्यातिगुह्यगोप्त्री त्वं गृहाणास्मत्कृतं जपम्।
सिद्धिर्भवतु मे देवि त्वत्प्रसात्सुरेश्वरि।।८।।


महालक्ष्म्यै च विद्महे  विष्णुपत्न्यै च धीमहि तन्नो लक्ष्मीः प्रचोदयात्।