कार्तिक पूर्णिमा

कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा कार्तिक पूर्णिमा कही जाती है। आज के दिन ही भगवान भोलेनाथ ने त्रिपुरासुर नामक महाभयानक असुर का अंत किया था और वे त्रिपुरारी के रूप में पूजित हुए थे। इसलिए इसे 'त्रिपुरी पूर्णिमा' भी कहते हैं।पौराणिक मान्यताओं के अनुसार कार्तिक मास बारह मासों में सबसे श्रेष्ठ मास माना गया है। यह भगवान कार्तिकेय द्वारा की गई साधना का माह माना जाता है। इस कारण ही इसका नाम कार्तिक महीना पड़ा। इस दिन कार्तिकेय के पूजन का विशिष्ठ महत्व है। कहा जाता है कि कार्तिकेय को भगवान विष्णु द्वारा धर्म मार्ग को प्रबल करने की प्रेरणा दी गई है।कार्तिकेय ने इसी इसी आधार पर धर्मशास्त्र में भगवान विष्णु के दामोदर अवतार तथा अर्द्घांगिनी राधा का विशेष उल्लेख किया है।

कार्तिक पूर्णिमा को देवताओं की दीपावली भी माना गया है
मान्यता है कि जिस प्रकार हम लोग कार्तिक की अमावस्या को दीपावली के रूप में मनाते हैं, उसी तरह देवता कार्तिक की पूर्णिमा को अपना दीपावली-महोत्सव मनाते हैं. ऐसा इसलिए कि आषाढ़ शुक्ल एकादशी से भगवान विष्णु चार माह के समय चातुर्मास में योगनिद्रा में लीन रहते हैं. संपूर्ण जगत के पालक श्री हरि के इस शयनकाल में समस्त मांगलिक कार्यो का स्थगित होना स्वाभाविक ही है.शास्त्रों में दिए वर्णन अनुसार श्रीहरि ने भाद्रमास की एकादशी को शंखासुर राक्षस करने के बाद क्षीरसागर में शयन किया और कार्तिक शुक्ल एकादशी को जागे. इसे देवोत्थान एकादशी के नाम से जाना गया. भगवान के जागने की खुशी में पांचवें दिन पूर्णिमा की रात देवों ने आह्लादित होकर गंगा, अन्य नदियों व सरोवरों के तट पर दीप जलाकर कर उत्सव मनाया.तब से इसे देवताओं की दीपावली भी कहा गया है |

इस दिन चंद्रोदय पर शिवा, संभूति, संतति, प्रीति, अनुसूया और क्षमा इन छ: कृतिकाओं का अवश्य पूजन करना चाहिए। कार्तिकी पूर्णिमा की रात्रि में व्रत करके वृष (बैल) दान करने से शिव पद प्राप्त होता है। गाय, हाथी, घोड़ा, रथ, घी आदि का दान करने से सम्पत्ति बढ़ती है। इस दिन उपवास करके भगवान का स्मरण, चिंतन करने से अग्निष्टोम यज्ञ के समान फल प्राप्त होता है तथा सूर्यलोक की प्राप्ति होती है। इस दिन मेष (भेड़) दान करने से ग्रहयोग के कष्टों का नाश होता है। इस दिन कन्यादान से 'संतान व्रत' पूर्ण होता है। कार्तिकी पूर्णिमा से प्रारम्भ करके प्रत्येक पूर्णिमा को रात्रि में व्रत और जागरण करने से सभी मनोरथ सिद्ध होते हैं। इस दिन कार्तिक के व्रत धारण करने वालों को ब्राह्मण भोजन, हवन तथा दीपक जलाने का भी विधान है। इस दिन यमुना जी पर कार्तिक स्नान की समाप्ति करके राधा-कृष्ण का पूजन, दीपदान, शय्यादि का दान तथा ब्राह्मण भोजन कराया जाता है। कार्तिक की पूर्णिमा वर्ष की पवित्र पूर्णमासियों में से एक है।इस पूर्णिमा को शैव मत में जितनी मान्यता मिली है उतनी ही वैष्णव मत में भी।

इस दिन यदि कृत्तिका नक्षत्र हो तो यह 'महाकार्तिकी' होती है, भरणी नक्षत्र होने पर विशेष फल देती है और रोहिणी नक्षत्र होने पर इसका महत्व बहुत अधिक बढ़ जाता है। इस दिन सन्ध्या समय में भगवान विष्णु का मत्स्यावतार हुआ था। इस दिन गंगा स्नान के बाद दीप-दान आदि का फल दस यज्ञों के समान होता है। ब्रह्मा, विष्णु, शिव, अंगिरा और आदित्य ने इसे 'महापुनीत पर्व' कहा है। इसलिए इसमें गंगा स्नान, दीपदान, होम, यज्ञ तथा उपासना आदि का विशेष महत्व  है। इस दिन कृत्तिका पर चंद्रमा और विशाखा पर सूर्य हो तो 'पद्मक योग' होता है जो पुष्कर स्नान के फल से भी दुर्लभ है। इस दिन कृतिका पर चंद्रमा और बृहस्पति हो तो यह 'महापूर्णिमा' कहलाती है। इस दिन सन्ध्याकाल में त्रिपुरोत्सव करके दीपदान करने से पूनर्जन्मादि कष्ट नहीं होता। इस तिथि में कृत्तिका में विश्व स्वामी महादेव का दर्शन करने से ब्राह्मण सात जन्म तक वेदपाठी और धनवान होता है।

सिख सम्प्रदाय में भी कार्तिक पूर्णिमा का दिन अत्यंत महत्व पूर्ण  है एवं प्रकाशोत्सव के रूप में मनाया जाता है। क्योंकि इस दिन सिख सम्प्रदाय के संस्थापक गुरू नानक देव का जन्म हुआ था। इस दिन सिख सम्प्रदाय के अनुयायी सुबह स्नान कर गुरूद्वारों में जाकर गुरूवाणी सुनते हैं और नानक जी के बताये रास्ते पर चलने की सौगंध लेते हैं। इसे गुरु पर्व भी कहा जाता है।


कार्तिक पूर्णिमा की कथाऐ
एक बार त्रिपुर राक्षस ने एक लाख वर्ष तक प्रयागराज में घोर तप किया। इस तप के प्रभाव से समस्त जड़-चेतन, जीव तथा देवता भयभीत हो गए। देवताओं ने तप भंग करने के लिए अप्सराएं भेजीं, पर उन्हें सफलता न मिल सकी। आख़िर ब्रह्मा जी स्वयं उसके सामने प्रस्तुत हुए और वर मांगने को कहा। त्रिपुर ने वर मांगा- 'न देवताओं के हाथों मरूं, न मनुष्य के हाथों।' इस वरदान के बल पर त्रिपुर निडर होकर अत्याचार करने लगा। इतना ही नहीं उसने कैलाश पर्वत पर भी चढ़ाई कर दी। परिणामत: महादेव तथा त्रिपुर में घमासान युद्ध छिड़ गया। अंत में शिव जी ने ब्रह्मा तथा विष्णु की सहायता से उसका संहार कर दिया। इस दिन क्षीरसागर दान का अनंत माहात्म्य है, क्षीरसागर का दान 24 अंगुल के बर्तन में दूध भरकर उसमें स्वर्ण या रजत की मछली छोड़कर किया जाता है। यह उत्सव दीपावली की भांति दीप जलाकर सायंकाल में मनाया जाता है।

पुराणों में
इसी दिन भगवान विष्णु ने प्रलय काल में वेदों की रक्षा के लिए तथा सृष्टि को बचाने के लिए मत्स्य अवतार धारण किया था।

महाभारत में
महाभारत काल में हुए १८ दिनों के विनाशकारी युद्ध में योद्धाओं और सगे संबंधियों को देखकर जब युधिष्ठिर कुछ विचलित हुए तो भगवान श्री कृष्ण पांडवों के साथ गढ़ खादर के विशाल रेतीले मैदान पर आए। कार्तिक शुक्ल अष्टमी को पांडवों ने स्नान किया और कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी तक गंगा किनारे यज्ञ किया। इसके बाद रात में दिवंगत आत्माओं की शांति के लिए दीपदान करते हुए श्रद्धांजलि अर्पित की। इसलिए इस दिन गंगा स्नान का और विशेष रूप से गढ़मुक्तेश्वर तीर्थ नगरी में आकर स्नान करने का विशेष महत्व है।

कार्तिक पूर्णिमा वैष्णव मत में
कार्तिक पूर्णिमा को गोलोक के रासमण्डल में श्री कृष्ण ने श्री राधा का पूजन किया था | हमारे तथा अन्य सभी ब्रह्मांडों से परे जो सर्वोच्च गोलोक है वहां इस दिन राधा उत्सव मनाया जाता है तथा रासमण्डल का आयोजन होता है | कार्तिक पूर्णिमा को श्री हरि के बैकुण्ठ धाम में देवी तुलसी का मंगलमय पराकाट्य हुआ था |कार्तिक पूर्णिमा को ही देवी तुलसी ने पृथ्वी पर जन्म ग्रहण किया था | कार्तिक पूर्णिमा को राधिका जी की शुभ प्रतिमा का दर्शन और वन्दन करके मनुष्य जन्म के बंधन से मुक्त हो जाता है | इस दिन बैकुण्ठ के स्वामी श्री हरि को तुलसी पत्र अर्पण करते हैं | कार्तिक मास में विशेषतः श्री राधा और श्री कृष्ण का पूजन करना चाहिए | जो कार्तिक में तुलसी वृक्ष के नीचे श्री राधा और श्री कृष्ण की मूर्ति का पूजन (निष्काम भाव से) करते हैं उन्हें जीवनमुक्त समझना चाहिए | तुलसी के अभाव में आंवलें के नीचे पूजन करनी चाहिए | कार्तिक मास में पराये अन्न, गाजर, दाल, चावल, मूली, बैंगन, घीया, तेल लगाना, तेल खाना, मदिरा, कांजी का त्याग करें | कार्तिक मास में अन्न का दान अवश्य करें |

स्नान और दान विधि
महर्षि अंगिरा ने स्नान के प्रसंग में लिखा है कि यदि स्नान में कुशा और दान करते समय हाथ में जल व जप करते समय संख्या का संकल्प नहीं किया जाए तो कर्म फल की प्राप्ति नहीं होती है। शास्त्र के नियमों का पालन करते हुए इस दिन स्नान करते समय पहले हाथ पैर धो लें फिर आचमन करके हाथ में कुशा लेकर स्नान करें, इसी प्रकार दान देते समय में हाथ में जल लेकर दान करें। आप यज्ञ और जप कर रहे हैं तो पहले संख्या का संकल्प कर लें फिर जप और यज्ञादि कर्म करें।

पूजन विधि 
कार्तिक पूर्णिमा की पूजा क लिए इस दिन सुबह-सवेरे दिनचर्या से निवृत होकर स्नान आदि करें.इस दिन स्नान करते समय पहले हाथ पैर धो लें फिर आचमन करके हाथ में कुशा लेकर स्नान करें

उसके बाद स्वच्छ वस्त्र धारण करें.कार्तिक पूर्णिमा की पूजा का मन में संकल्प कर

अपने इष्ट अथवा भगवान विष्णु की विधिवत रुप से पूजा- अर्चना करें.

भगवान को शुद्ध सुवासित जल से स्नान कराएं। स्नान के बाद चंदन, पीले वस्त्र, पीले फूल वहीं यदि शिवलिंग हो तो उस पर दूध मिले जल से स्नान के बाद सफेद आंकड़े के फूल, अक्षत, बिल्वपत्र और दूध से बनी मिठाईयों का भोग लगाकर चंदन धूप व गो घृत जलाकर भगवान का मंत्रों से स्मरण करें -

पूजा व मंत्र जप के बाद इष्ट की धूप, दीप व कर्पूर आरती कर घर के द्वार पर दीप प्रज्जवलित भी करें।