नाग पंचमी (11 August 2013)


हर साल श्रावण शुक्ल पंचमी को नाग पंचमी मनाई जाती है। ज्योतिष के अनुसार पंचमी तिथि के स्वामी नाग हैं। अत: पंचमी नागों की तिथि है। शास्त्रों में यक्ष, किन्नर एवं गंधर्वो की भांति नागों को भी देव रूप माना गया है। जिस प्रकार देवताओं की पूजा होती है उसी प्रकार इनकी पूजा करने का नियम है। सभी देवताओं की तरह इनकी पूजा के लिए भी एक विशेष निर्धारित है।श्रावण कृष्ण एवं शुक्ल पंचमी के दिन नागों की पूजा करने से नागराज वासुकी प्रसन्न होकर अभय प्रदान करते हैं। घर में किसी की सांप काटने से मृत्यु नहीं होती है। अगर सांप काटने से किसी की मृत्यु हो गयी है तो उसे भी मुक्ति मिलती है।

हिंदू धर्मग्रंथों के अनुसार, नाग महर्षि कश्यप और उनकी पत्‍‌नी कद्रू की संतान हैं। सांप शक्ति एवं सूर्य के अवतार माने गए हैं, इसलिए नाग को देवताओं की श्रेणी में रखा गया है। पुराणों के अनुसार, सूर्य के रथ में बारह सर्प (नाग) हैं, जो क्त्रमश: प्रत्येक माह में उनके रथ के वाहक बनते हैं। भगवान विष्णु क्षीर-सागर में शेषनाग की शय्या पर विश्राम करते हैं। शेषनाग ही रामावतार में लक्ष्मण और कृष्णावतार में बलराम के रूप में अवतरित हुए थे। मान्यता है कि नाग-पंचमी के दिन भगवान श्रीकृष्ण द्वारा कालिय-मर्दन लीला हुई थी। 

नाग के कई नाम हैं जैसे शेष यानी अनंत, बासुकि, शंख, पद्म, कंबल, कर्कोटक, अश्वतर, घृतराष्ट, ऊ शंखपाल, कालिया, तक्षक और पिंगल इन बारह नागों की बारह महीनों में पूजा करने का विधान है। नाग-पंचमी पर मुख्यत: पांच पौराणिक नागों की पूजा होती है - अनंत, वासुकि, तक्षक, कर्कोटक व पिंगल। असंख्य फन वाले अनंत (शेष) नाग की शय्या पर भगवान विष्णु विश्राम करते हैं। वासुकि नाग को मंदराचल से लपेटकर समुद्र-मंथन हुआ था। तक्षक के डसने से राजा परीक्षित की मृत्यु हो गई। नागवंशी कर्कोटक के छल से रुष्ट होकर नारदजी ने उसे शाप दिया था। तब राजा नल ने उसके प्राणों की रक्षा की थी। हिंदू व बौद्ध साहित्य में पिंगल को कलिंग में छिपे खजाने का संरक्षक माना गया है।

जो भी कोई नाग पंचमी को व्रत करता है उसे इस व्रत के प्रताप से कालभय, विषजन्य मृत्यु और सर्पभय नहीं रहता। नागपंचमी के व्रत का सीधा संबंध उस नागपूजा से भी है जो शेषनाग भगवान शंकर और भगवान विष्णु की सेवा में भी तत्पर हैं। इनकी पूजा से शिव और विष्णु पूजा के तुल्य फल मिलता है। पुराण में बताया गया है कि अगर कोई व्यक्ति पूरे वर्ष नाग की पूजा नहीं कर पता है तो उसे श्रावण कृष्ण एवं शुक्लपंचमी जिसे नाग पंचमी के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन नागों की पूजा करनी चाहिए। 



इस दिन नागों को दूध पान कराने से सभी बड़े-बड़े नाग अभय दान देते हैं। परिवार में सर्पभय नहीं रहता। कालसर्पयोग का प्रभाव क्षीण हो जाता है। इस दिन कालसर्पदोष की निवृति के लिए पूजा करना भी फलदायक होता है। 

पौराणिक संदर्भ


भविष्य पुराण में कथानक है कि देवासुर-संग्राम में हुए समुद्र-मंथन से उच्चैश्रवा नामक अश्व (घोड़ा) निकला था। उसे देखकर नागमाता कद्रू ने अपनी सौत विनता से कहा, इस घोड़े का सफेद रंग है, परंतु बाल काले दिखलाई पड़ते हैं। विनता द्वारा यह बात स्वीकार न किए जाने पर दोनों में वाद-विवाद छिड़ गया। कद्रू ने नागों से अश्व के बाल के समान सूक्ष्म होकर उच्चैश्रवा के शरीर पर लिपट जाने को कहा, ताकि वह काले रंग का दिखाई देने लगे। पुत्र नागों द्वारा विरोध करने पर कद्रू ने क्त्रोधित होकर उन्हें राजा जनमेजय द्वारा किए जाने वाले सर्प-यज्ञ के दौरान भस्म हो जाने का शाप दे दिया। तब ब्रह्माजी के वरदान से महर्षि कश्यप ने सर्प-यज्ञ को रोककर नागों की प्राणरक्षा की। नाग जाति की रक्षा के लिए ब्रह्माजी ने मानव जाति को वरदान दिया था कि जो इस लोक में नाग पूजा करेगा या उनकी रक्षा करेगा उसको कालभय, अकालमृत्यु, विषजन्य, सर्पदोष या कालसर्प दोष और सर्पदंश का भय नहीं रहेगा। मान्यता है कि ब्रह्माजी द्वारा पंचमी के दिन वरदान दिए जाने और पंचमी के दिन ही आस्तीक मुनि द्वारा नागों की रक्षा किए जाने के कारण पंचमी-तिथि नागों को समर्पित है।

भविष्य पुराण के अनुसार जो व्यक्ति पूरे वर्ष चतुर्थी तिथि को व्रत रखकर पंचमी तिथि के दिन ब्राह्मणों को भोजन करवाता है उस पर अनंत, कर्कोटक, कुलिक, महापद्म जैसे दिव्य नाग प्रसन्न रहते हैं। ऐसे व्यक्ति के घर में किसी को भी सांप काटने का भय नहीं रहता है। सांप को धन का कारक भी माना गया है। जो लोग सर्प की पूजा करते हैं उनके घर में धन लक्ष्मी का वास होता है।


गरुड़ पुराण के अनुसार नागपंचमी के दिन घर के दोनों ओर नाग की मूर्ति खींचकर अनन्त आदि प्रमुख महानागों का पूजन करना चाहिए। 

स्कन्द पुराण के नगर खण्ड में कहा गया है कि श्रावण पंचमी को चमत्कारपुर में रहने वाले नागों को पूजने से मनोकामना पूरी होती है। 

नारद पुराण में सर्प के डसने से बचने के लिए कार्तिक शुक्ल चतुर्थी को नाग व्रत करने का विधान बताया गया है। आगे चलकर सुझाव भी दिया गया है कि सर्पदंश से सुरक्षित रहने के लिए परिवार के सभी लोगों को भादों कृष्ण पंचमी को नागों को दूध पिलाना चाहिए।

नागपंचमी पूजन विधि

प्राचीन काल में इस दिन घरों को गोबर में गेरू मिलाकर लीपा जाता था। फिर नाग देवता की पूर्ण विधि-विधान से पूजा की जाती थी। पूजा करने के लिए एक रस्सी में सात गांठें लगाकर रस्सी का सांप बनाकर इसे लकड़ी के पट्टे के ऊपर सांप का रूप मानकर बठाया जाता है। 

इस व्रत में चतुर्थी के दिन एक बार भोजन करें तथा पंचमी के दिन उपवास करके शाम को भोजन करना चाहिए। इस दिन चांदी, सोने, लकड़ी या मिट्टी की क़लम से हल्दी और चंदन की स्याही से पांच फल वाले पांच नाग बनाएँ और पंचमी के दिन सांपों की प्रसन्नता के लिए गाय के गोबर से दरवाजे पर सांप की आकृति बनाएं। इसके बाद दूध, दही, दूर्वा, पुष्प, हल्दी, रोली, चावल  अक्षत, कुश एवं गुग्गुल से नागों की की विधिवत पूजा करें।

फिर कच्चा दूध, घी, चीनी मिलाकर इसे लकड़ी के पट्टे पर बैठे सर्प देवता को अर्पित करें। 

पूजन करने के बाद सर्प देवता की आरती करें। इसके बाद कच्चे दूध में शहद, चीनी या थोड़ा-सा गुड़ मिलाकर जहां कहीं भी सांप की बांबी या बिल दिखे उसमें डाल दें और उस बिल की मिट्टी लेकर चक्की लेकर, चूल्हे, दरवाज़े के निकट दीवार पर तथा घर के कोनों में सांप बनाएं। इसके बाद भीगे हुए बाजरे, घी और गुड़ से इनकी पूजा करके, दक्षिणा चढ़ाएं तथा घी के दीपक से आरती उतारें। अंत में नागपंचमी की कथा सुनें।

नाग पूजन के बाद पांच ब्राह्मणों को भोजन करना चाहिए  पूजा के बाद ब्राह्मणों को लड्डू या खीर का भोजन कराएं।

इस दिन नाग दर्शन का विशेष माहात्म्य है। इस दिन नागदेव के दर्शन अवश्य करना चाहिए। बांबी (नागदेव का निवास स्थान) की पूजा करना चाहिए।इस दिन सांप मारना मना है। पूरे श्रावण माह विशेष कर नागपंचमी को धरती खोदना निषिद्ध है। खास तौर पर इस दिन सफेद कमल पूजा में रखा जाता है। इस दिन खाने में नमक का प्रयोग नहीं करें।

ओम कुरु कुल्ले फट् स्वाहा' 

मंत्र का 108 बार जप करें। संभव हो तो इस मंत्र का प्रतिदिन जप करना चाहिए। जिस घर में इस मंत्र का जप किया जाता है उस घर में सांप प्रवेश नहीं करता है।

नागपंचमी की कथाएँ

जनमानस में नागपंचमी पर्व की विविध जनश्रुतियां और कथाएँ प्रचलित है। नागपंचमी के संबंध में ऐसी ही दो बहुप्रचलित कथाएँ यहाँ उपलब्‍ध  हैं।

कथा (1)


किसी नगर में एक किसान अपने परिवार सहित रहता था। उसके तीन बच्चे थे-दो लड़के और एक लड़की। एक दिन जब वह हल चला रहा था तो उसके हल के फल में बिंधकर सांप के तीन बच्चे मर गए। बच्चों के मर जाने पर मां नागिन विलाप करने लगी और फिर उसने अपने बच्चों को मारने वाले से बदला लेने का प्रण किया। एक रात्रि को जब किसान अपने बच्चों के साथ सो रहा था तो नागिन ने किसान, उसकी पत्नी और उसके दोनों पुत्रों को डस लिया। दूसरे दिन जब नागिन किसान की पुत्री को डसने आई तो उस कन्या ने डरकर नागिन के सामने दूध का कटोरा रख दिया और हाथ जोड़कर क्षमा मांगने लगी। उस दिन श्रावण शुक्ल पंचमी या नागपंचमी थी। नागिन ने प्रसन्न होकर कन्या से वर मांगने को कहा। लड़की बोली-'मेरे माता-पिता और भाई जीवित हो जाएं और आज के दिन जो भी नागों की पूजा करे उसे नाग कभी न डसे। नागिन तथास्तु कहकर चली गई और किसान का परिवार जीवित हो गया। उस दिन से नागपंचमी को खेत में हल चलाना और साग काटना निषिद्ध हो गया।

 कथा- (2)

एक राजा के सात पुत्र थे, उन सबके विवाह हो चुके थे। उनमें से छह पुत्रों के संतान भी हो चुकी थी। सबसे छोटे पुत्र के अब तक के कोई संतान नहीं हुई, उसकी बहू को जिठानियां बाँझ कहकर बहुत ताने देती थीं।

एक तो संतान न होने का दुःख और उस पर सास, ननद, जिठानी आदि के ताने उसको और भी दुःखित करने लगे। इससे व्याकुल होकर वह बेचारी रोने लगती। उसका पति समझाता कि 'संतान होना या न होना तो भाग्य के अधीन है, फिर तू क्यों दुःखी होती है?' वह कहती- सुनते हो, सब लोग बाँझ- बाँझ कहकर मेरी नाक में दम किए हैं। 

पति बोला- दुनिया बकती है, बकने दे मैं तो कुछ नहीं कहता। तू मेरी ओर ध्यान दे और दुःख को छोड़कर प्रसन्न रह। पति की बात सुनकर उसे कुछ सांत्वना मिलती, परंतु फिर जब कोई ताने देता तो रोने लगती थी।

इस प्रकार एक दिन नाग पंचमी आ गई। चौथ की रात को उसे स्वप्न में पाँच नाग दिखाई दिए, उनमें एक ने कहा- 'अरी पुत्री। कल नागपंचमी है, तू अगर हमारा पूजन करे तो तुझे पुत्र रत्न की प्राप्ति हो सकती है। यह सुनकर वह उठ बैठी और पति को जगाकर स्वप्न का हाल सुनाया। पति ने कहा- यह कौन सी बड़ी बात है?

पाँच नाग अगर दिखाई दिए हैं तो पाँचों की आकृति बनाकर उसका पूजन कर देना। नाग लोग ठंडा भोजन ग्रहण करते हैं, इसलिए उन्हें कच्चे दूध से प्रसन्न करना। दूसरे दिन उसने ठीक वैसा ही किया। नागों के पूजन से उसे नौ मास के बाद सुन्दर पुत्र की प्राप्ति हुई।

ब्रह्माजी ने यह वरदान मानवजाति को पंचमी के दिन दिया था। आस्तिक मुनि ने भी पंचमी को ही नागों की रक्षा की थी, तभी नागपंचमी की यह तिथि नागों को अत्यंत प्रिय है। श्रावण शुक्ल पंचमी को उपवास कर नागों की पूजा करनी चाहिए। बारह महीने तक चतुर्थी तिथि के दिन एक बार भोजन करके पंचमी को व्रत करें। मिट्टी के नाग बनाकर पंचमी के दिन करवीर, कमल चमेली आदि पुष्प, गंध, धूप और विविध नैवेद्य से उसकी पूजा करके घी, खीर ब्राह्मणों को खिलाएं।