वैशाख माह

हिन्दु धर्म के अनेक ग्रंथों और पुराणों में जिनमें स्कंदपुराण, पद्मपुराण, ब्रह्मपुराण आदि प्रमुख है, वैशाख माह के महत्व के बारे में विस्तार से लिखा गया है। स्कंद पुराण में देवर्षि नारद ने वैशाख माह का महत्व बताया कि विद्याओं में वेद श्रेष्ठ है, मंत्रों में प्रणव, वृक्षों में कल्पवृक्ष, धेनुओं में कामधेनु, देवताओं में विष्णु, वर्णों में ब्राह्मण, वस्तुओं में प्राण, नदियों में गंगा, तेजों में सूर्य, अस्त्र-शस्त्रों में चक्र, धातुओं में स्वर्ण, वैष्णवों में शिव तथा रत्नों में कौस्तुभमणि श्रेष्ठ है, उसी तरह महीनों में वैशाख मास सर्वोत्तम है। देवर्षि नारद ने इस माह की श्रेष्ठता के साथ ही वैशाख माह के धर्म और आचरण का महत्व भी बताया। उनके अनुसार इस माह में ग्रीष्म ऋतु होने से जलदान ही श्रेष्ठ है। इस माह में जलदान करने वाला, प्याऊ लगवाने वाला, कुएं और तालाब बनवाने वाला असीम पुण्य पाता है। देवर्षि नारद द्वारा बताए गए वैशाख माह के महत्व और आचरण का संदेश यही है कि मानव ऐसे आचरण करें जिससे एक मानव दूसरे मानव से भावनाओं और संवेदनाओं से जुड़ा रहे। चूंकि यह माह गर्मी के मौसम का होता है। जल की कमी होती है। मानव के साथ ही अमूक प्राणी और पक्षियों के जीवन के लिए भी जल बहुत आवश्यक होता है। अत: जल का मूल्य समझकर जल का अपव्यय न करते हुए जल का दान करना, पक्षियों के लिए जलपात्र रखना चींटियों के लिए आटे-गुड़ से बनी गोलियां और मछलियों के लिए दाना देना स्वयं के मन को सुकून देने के साथ ही अहं भाव तिरोहित कर दूसरों को भी सुख और तृप्ति देता है। इससे धर्म के साथ मानवीय भावनाओं का भी पोषण होता है। अमूक जीवों को जल और भोजन देना मानव को प्रकृति से भी जोड़ता है।


वैशाख माह पर्व और त्यौहार का मास हैं। इन सभी पर्व त्यौहारों में जीवन जीने के संदेश छुपे हैं। इसलिए वैशाख मास भारतीय लोक जीवन में समाया हुआ है। इनके व्रत-त्यौहारों के संदेशों को समझकर और अपनाकर मानव सुख और प्रसन्नता को पा सकता है। इसका धार्मिक पक्ष भी यह है कि इस माह किए जाने वाले दान, पुण्य का फल इस जन्म में प्राप्त होता है। 

वैशाख स्नान- चैत्र शुक्ल पूर्णिमा से वैशाख शुक्ल पूर्णिमा तक हर दिन सूर्योदय के पहले स्नान (तीर्थ में या घर पर) कर विष्णु पूजा के साथ और व्रत रखने से पुण्य तो प्राप्त होता ही है। किंतु इसके साथ ही शरीर निरोग और दोष रहित हो जाता है। 

संकट चतुर्थी- इस व्रत में भगवान गणेश का सांयकाल पूजन किया जाता है। रात को चंद्रमा के उदय होने पर अघ्र्य और पूजा की जाती है। संदेश यह है कि विपरीत परिस्थितियों से बाहर आने की कोशिश करनी चाहिए। 

वरुथिनी और मोहिनी एकादशी- वैशाख माह की कृष्ण पक्ष की एकादशी को वरुथिनी और शुक्ल पक्ष की एकादशी मोहिनी एकादशी के नाम से जानी जाती है। इनमें भगवान विष्णु का पूजन और व्रत का विधान है। यह व्रत मन, वचन कर्म के दोषों को मिटाता है। साथ ही यह व्रत और संयम के मोह, लालसा, राग, आसक्ति से छूटकर मनोबल को मजबूत कर जीवन में संघर्ष द्वारा सफलता का संदेश देता है। 

प्रदोष व्रत- यह हर माह की कृष्ण व शुक्ल पक्ष त्रयोदशी को किया जाने वाला स्वयं शिवजी द्वारा बताया गया व्रत है। शिव कल्याण के देवता है। इसमें आत्मकल्याण का संदेश छुपा है। इसके लिए जीवन में अनुशासन और संयम आवश्यक है। 

अमावस्या व्रत- अमावस्या को पर्व तिथि कहते हैं। यह तिथि को दान, पुण्य, जप, तप और व्रत करने का तो महत्व है ही साथ ही इस तिथि को पितृ श्राद्ध भी बहुत महत्व है। इस व्रत को करने से व्यावहारिक जीवन की अनेक बाधाएं और कष्ट दूर होते हैं। संदेश यही है कि माता-पिता और पूर्वजों को कभी न भूलें। उनके पीछे ही नहीं उससे भी अधिक उनके साथ रहते हुए उनका और उनकी भावनाओं को सम्मान करने से हम सुखी और कलहमुक्त जीवन जी सकते हैं। उनके जीवन से हमें प्रेरणा लेना चाहिए।

अक्षय तृतीया- वैशाख शुक्ल तृतीया को आखातीज या अक्षय तृतीया कहते हैं। इस दिन किए हुए दान, स्नान, यज्ञ, जप आदि सभी कर्मों का अनंत फल मिलता है। इनका कभी नाश नहीं होता। यह अक्षय होते हैं। यह दिन विष्णु अवतारों के कारण भी पवित्र माना जाता है। इनमें नर-नारायण, परशुराम और हयग्रीव अवतार प्रमुख हैं। यह दिन त्रेतायुग की शुरुआत भी हुई थी। यह संदेश देता है कि हम ऐसे कार्य करें जिससे स्वयं के साथ दूसरों को भी नुकसान न हो। हम ऐसे कार्य करे कि मरकर भी अमर हो जाएं। इसके लिए मानव को बोल, व्यवहार और आचरण में सत्य को अपनाना चाहिए। क्योंकि सत्य को शाश्वत होता है। अक्षय का यही वास्तवित अर्थ होगा। यह दिन चार धामों में एक बद्रीनारायण के पट खुलने का भी होता है। 

श्री जानकी नवमी- इस दिन माता सीता का जन्मोत्सव मनाया जाता है। माता सीता भारतीय स्त्रियों के लिए मर्यादित जीवन और पतिव्रता नारी के धर्म निभाने का महान उदाहरण है। नृसिंह जयंती- यह व्रत वैशाख माह की शुक्लपक्ष की चतुर्दशी को किया जाता है। इस दिन भगवान नृसिंह ने अधर्म के प्रतीक हिरण्यकशिपु का वध कर धर्म के प्रतीक प्रहलाद की रक्षा की और यह संदेश दिया किया मानव को सदा ही सत्य और धर्म के मार्ग पर ही चलकर जीवन की ऊंचाईयों को छू सकता है। 

वैशाख पूर्णिमा व्रत- वैशाखी पूर्णिमा को भगवान सत्यनारायण का व्रत और कथा का विधान है। इस दिन दान-धर्म और स्नान का भी महत्व है। इसका संदेश यही है कि सत्य को अपनाने से जीवन में सुख, शांति, धन और यश को पाना संभव है।



वैशाख का महीना हमें सरलता और परोपकार की भावना से जीना सीखाता है। पुराणों में वैशाख को पवित्र मास बताया गया है। हमारे मनीषियों और ऋषि-मुनियों के द्वारा वैशाख माह में होने वाले प्रकृति के बदलावों को समझकर अपने अनुभव और ज्ञान से इस माह के व्रत, पर्व, त्यौहार की रचना की और इनके साथ ही पालन हेतु नियम-संयम को लोक व्यवहार से जोड़ा गया। जिनमें धार्मिक कर्म, स्नान और दान का महत्व भी बताया गया है। यह सारे विधान मानव को सादगी सेे रहने और हर प्राणी मात्र के प्रति संवेदना रखने की प्रेरणा देते हैं। 

वैशाख माह में तीर्थ, पवित्र स्थान या अपने निवास पर ही स्नान का बहुत महत्व बताया गया है। चूंकि वैशाख माह से गर्मी का मौसम शुरु होता है। इसलिए नियमित रुप से प्रात: स्नान करने से तन को जहां तपन से राहत मिलती है, वहीं यह मास भगवान विष्णु की आराधना का होने से मानव को धर्म से जोड़ता है। जिससे वह तन के साथ-साथ मन की शांति महसूस करता है। उस पर हावी तनाव और थकान दूर होती और वह सुकून पाता है। मौसम में बदलाव में व्यक्ति खुद को निरोग रख पाता है। साथ ही सुबह जल्दी उठने से व्यक्ति की दिनचर्या में अनुशासन आता है। जीवन में अनुशासन ही सफलता तक पहुंचाता है।वैशाख मास की परंपराएं मानवीय संवदेनाओं से भरी हुई हैं। जिनसे लोगों में मानवता की भावना पोषित होती रही है। हर धर्म में भूखे को भोजन देना और प्यासे जीव को पानी पिलाकर तृप्त करना धर्म पालन में श्रेष्ठ कर्तव्य माना जाता है। सनातन धर्म में वैशाख माह में भी ग्रीष्म ऋतु की गर्माहट में प्राणीमात्र को शीतलता देने के लिए लोक व्यवहार में इन दो बातों के साथ ही अन्य परंपराएं भी प्रचलित है। जिनमें जल का दान, प्यासे को पानी पिलाने के लिए प्याऊ लगाना, पंखा दान जो ठंडी हवा देता है, कड़ी धूप से बचने के लिए छायादार स्थान बनाना, धूप से तपती जमीन से पैरों को बचाने के लिए पदयात्रियों को जूते-चप्पल या पादुका देना तथा भोजन कराना आदि प्रमुख हैं। 

इस प्रकार वैशाख माह धार्मिक दृष्टि से जहां पुण्य प्राप्ति का काल है, वहीं व्यावहारिक दृष्टि से यह माह शरीर के ताप के साथ ही मन के संताप का शमन करता है।


वैशाख माह तिथियों और पर्वों का पवित्र काल है। जिनका संबंध देव अवतारों और धार्मिक परंपराओं से है। जहां इस माह के शुक्ल पक्ष को अक्षय तृतीया का दिन विष्णु अवतारों नर-नारायण, परशुराम, नृसिंह और ह्ययग्रीव के अवतरण का माना जाता है। वहीं वैशाख शुक्ल पक्ष की नवमी को देवी सीता का जन्मोत्सव मनाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि माता सीता इसी दिन धरती से प्रकट हुई। यह माह त्रेतायुग की शुरुआत का भी माना जाता है। वैशाख माह की इस पवित्रता और दिव्यता के कारण ही कालान्तर में वैशाख माह की तिथियों का संबंध लोक परंपराओं में अनेक देव मंदिरों के पट खोलने और महोत्सवों के मनाने के साथ जोड़ दिया। यही कारण है कि हिन्दू धर्म के चार धाम में से एक बद्रीनाथधाम के कपाट वैशाख माह की अक्षय तृतीया को खुलते हैं। इसी वैशाख के शुक्ल पक्ष की द्वितीया को एक और हिन्दू तीर्थ धाम पुरी में भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा भी निकलती है। वैशाख कृष्ण पक्ष की अमावस्या को देववृक्ष वट की पूजा की जाती है।